Wednesday, October 23, 2013

तेरा इमोशनल अत्याचार....................

कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है कि अगर इस देश की जनता इमोशनल न होती तो क्या होता? हम भारतीय इमोशनल होते हैं यह तो तय है पर हम कभी कभी इतने इमोशनल हो जाते हैं कि भावनाओं में बह जाते हैं और अपना अच्छा बुरा समझे बगैर कई बार गलत फैसले ले लेते हैं | हमारे दैनिक जीवन में अक्सर ऐसी घटनाएं होती हैं जो ये साबित करती हैं कि हम इमोशनल FOOLS हैं | अभी दिवाली रही है और हर बड़े छोटे न्यूज़ चैनल पर और अखबारों में ब्रेकिंग न्यूज़ आएगी अमुक जगह पर इतने क्विंटल मिलावटी मिठाई और खोया पकड़ा गया और इसी न्यूज़ के बीच में कैडबरी का विज्ञापन आएगा एक बेटा अपने माता पिता को एक चोकलेट का डिब्बा गिफ्ट करता है और नेपथ्य में आवाज़ आती है इस दिवाली आप किसे खुश कर रहे हैंबस भैया जी हो गए इमोशनल ! जहाँ समस्या और समाधान एक ही जगह पर उपलब्ध हो तो परेशानी काहे की ! फिर चाहे ACC Cement वाले दादा और पोते की कहानी हो या  Axis Bank का यह बताना कि ज़िन्दगी की रेस में कोई अकेला नहीं बढ़ता, Anchor Switches अगर संवेदना का प्रतीक हैं तो Fevicol जुडाव का, और तो और बिना Tanishq  के हीरे की अंगूठी दिए यदि आप यह कहते हैं कि मुझे मेरी बीवी से प्यार है तो शायद आप की बीवी ही यकीन न करे  | आने वाले दिनों में हमारी आत्मकथाएं तब तक पूरी नहीं मानी जाएँगी जब तक उसमे My Maggi My Story”  न शामिल हों | पर जनाब ! ये तो सिर्फ बानगी है अपने घर में नज़र दौड़ा कर देखिये तो हर जगह कुछ न कुछ ऐसा ही मिलेगा जो हमारी भावनाओं से जुड़ा होगा |

असल में ये माना जाता है जीवन में हम जो भी फैसले लेते हैं उनमे 90% फैसले दिल से और सिर्फ 10% दिमाग से सोच कर लिए जाते हैं और आज की उपभोक्तावादी संस्कृति में हमारी भावनाओं पर चोट करके अपना उत्पाद बेच लेना कंपनियों के लिए सबसे आसान रास्ता है |

परन्तु इमोशनल होने की हमारी आदत केवल उत्पादों को खरीदने तक सीमित होती तो भी कोई हर्ज़ नहीं था पर हम लोग तो अपना नेता चुनते समय भी इमोशनल हो जाते हैं और हमें इमोशनल करके राजनैतिक दल अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं |

थोडा सा इतिहास पर नज़र डालें तो पता लगेगा चुनावों के समय हम लोग कब कब इमोशनल हुए | हम पहली बार 1984 में बेहद इमोशनल हुए, और देश के इतिहास में विभाजन की त्रासदी के बाद हुए सबसे बड़े नरसंहार के बावजूद हमने कांग्रेस को 414 लोकसभा सीट दिलवा दी, नतीजा! देश ने आज़ादी के बाद का सबसे बड़ा घोटाला बोफोर्स कांड के रूप देखा | हम दूसरी बार 1991 में इमोशनल हुए, कांग्रेस की सरकार बनी, नतीजा! नरसिम्हा राव की सरकार में हमने शेयर घोटाला, सांसद घूस कांड, जैन हवाला, लखूभाई पाठक रिश्वत कांड, और न जाने क्या क्या ! हम तीसरी बार फिर 2004 में इमोशनल हो गए सोनिया गाँधी जी के लिए और नतीजा आज तक हम सब भुगत रहे हैं | पिछले 9 वर्षों में क्या क्या घोटाले हुए हैं ये बताने के लिए मुझे ब्लॉग नहीं किताब लिखनी पड़ेगी |


पर मज़ेदार बात यह है कि जब देश में एक जबरदस्त कांग्रेस विरोधी माहौल है और गाँधी परिवार और राहुल गाँधी के पास न कोई मुद्दा है न कोई एजेंडा, न तो ये अपनी सरकार की उपलब्धियां देश को बता सकते हैं (कोई होती तो जरूर बताते), और न ही भविष्य की योजनायें, तो हाज़िर है! आप सब के सामने माननीय राहुल गाँधी जी ! अपना पारिवारिक कहानियों का पिटारा लेकर जिसमे कभी माँ की कहानी होती है कभी दादी और पापा की और अपने उसी इमोशनल अत्याचार के सहारे एक बार फिर सहानभूति बटोरने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं | पर क्या इस बार ये अस्त्र चलेगा ? ये तो जनता को तय करना है यानि की आप को और हमको तो तैयार रहिये चुनाव के पहले इसी तरह के और भी न जाने कितने इमोशनल अत्याचार हम लोगों को झेलने पड़ेंगे ?

No comments:

मैं कितनी भी कोशिश कर लूँ पर पापा जैसा बन नहीं पाया !

  मेरे पापा कोई सुपरमैन नहीं हैं पर फिर भी, मैं कितनी भी कोशिश कर लूँ पर पापा जैसा कभी बन नहीं पाया ! स्कूटर खरीदने के बाद भी चालीस की उम्र ...