Tuesday, May 20, 2014

मैं प्रेम गीत कैसे गाऊँ.....?


मैं प्रेम गीत कैसे गाऊँ, मैं प्रेम गीत कैसे गाऊँ....?

जब हो कन्धों पर भार प्रिये ! दिखता न कोई उपचार प्रिये !
हर ओर मचा कोहराम यहाँ, हो रक्तपात अविराम यहाँ,
निज सुख की इच्छा रखूँ बस, दृग मींच तुम्हारा ध्यान करूं,
कैसे यह कष्ट भुलाकर सब, मैं प्रीत-सुधा का पान करूं,
जलती वसुधा, बढ़ता मरुथल, यह सब मैं कैसे बिसराऊँ ?
मैं प्रेम गीत कैसे गाऊँ, मैं प्रेम गीत कैसे गाऊँ.........?

जब सीमा के प्रहरी का शव मस्तकविहीन हो जाता है,
और देश का शासक कर्णधार निद्रा विलीन हो जाता है,
जब महंगाई के बोझ तले मरता किसान और श्रमिक यहाँ,
और नन्हा शिशु बिन भोजन के रोते-रोते सो जाता है,
तब कहो प्रिये कैसे मैं तुम्हारे रूप-जाल में खो जाऊं ?
मैं प्रेम गीत कैसे गाऊँ, मैं प्रेम गीत कैसे गाऊँ........?

जब चलते वाहन में बेटी का मान भंग हो जाता है,
रक्षक बन भक्षक कर प्रहार लज्जाविहीन मुस्काता है,
संतो का वेश बनाकर जब करता कुकर्म यह नर पिशाच,
और धनबल से अपने सारे अपराधों को धो जाता है,
तब कहो तुम्हारे आँचल में छिपकर कैसे मैं सो जाऊं ?
मैं प्रेम गीत कैसे गाऊँ, मैं प्रेम गीत कैसे गाऊँ............?

है राष्ट्र प्रथम, फिर निज कुटुंब, फिर निज सुख का अधिकार हमें,
जब कर्तव्यों को पूर्ण करें तब साधन हो स्वीकार हमें,
है ज्ञात मुझे इन बातों से मन व्यथित तुम्हारा होता है,
पर रोता है जब राष्ट्र प्रिये ! मेरा भी तो मन रोता है,
ऐसे में केवल पोंछ तुम्हारे अश्रु, मैं कैसे मुस्काऊँ ?
मैं प्रेम गीत कैसे गाऊँ, मैं प्रेम गीत कैसे गाऊँ.....?

:::अम्बेश तिवारी 

2 comments:

कनुप्रिया said...

बहुत सुन्दर रचना...... हमेशा की तरह..

Unknown said...

दिल की गहराई से निकली तुमाहरी इस पुकार में...
मेरा दिल भी रोता है और जीता है एक आस में...
कि रोने का समय गया अब पर्व है नयी उमंगो का..
जिसने भी कुछ गलत किया या साथ दिया है गलती में...
उसको मिलेगा अब दंड यहाँ...नए नूतन भारत में कोई
न तकलीफ न कोई डर..सिर्फ रहेगा प्रेम अमर

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