चाँद-चांदनी, अगणित तारे, तरु-पल्लव,
कलियाँ क्यों हैं !
धरती, अम्बर, बादल, पर्वत, खेत और
नदियाँ क्यों हैं !
क्यों होते दिन-रैन, समय क्यों सदा
निरंतर चलता है !
क्यों मौसम आते जाते, सूरज क्यों रोज़ निकलता
है !
कहाँ छुपा बैठा है वो जिसने यह सारा
खेल रचा !
हम रोते निशिदिन और वो भीतर ही भीतर
हँसता है !
आज पूछता हूँ उससे काहे को यह जंजाल
रचा !
हे परमेश्वर ! किसकी खातिर यह सब
मायाजाल रचा ?
यह पाप-पुण्य, यह झूठ-सत्य, यह
धर्म-अधर्म रचा क्यों है !
क्यों अंतस में अनुराग दिया, जीवन
वैराग्य रचा क्यों है !
क्यों जन्म हुआ, क्यों मरण हुआ, किसने
भेजा, कुछ ज्ञान नहीं !
क्यों लक्ष्य-विहीन बढ़े पथ पर जिसकी
सीमा का भान नहीं !
तुम हर्ष-शोक से दूर तो किसके लिए यज्ञ
और आराधन,
यह भजन, आरती, और अजान, होता है फिर
किसका पूजन !
जब आदि नहीं, कोई अंत नहीं फिर किसको
खोजा जाता है !
चिर शून्य विलीन भटक मरते, है मोक्ष
कहाँ कुछ ज्ञान नहीं !
जैसे जैसे कुछ ज्ञान बढ़ा, वैसे वैसे कुछ
शोक बढ़ा !
जब प्रेम बढ़ा, वैराग्य बढ़ा जब आयु बढ़ी
तब रोग बढ़ा !
हमसे पहले कितने आये कितने आगे भी
आयेंगे !
यह भार लिए कांधों पर बस एक दिन जीवन
से जायेंगे !
इस कष्टों के भवसागर का मिलता न
पारावार कोई !
हम जाएँ कहाँ, है अंत कहाँ, है नहीं
कहीं आधार कोई !
हम हार चुके इस जीवन से, अब हमे उबारो
हे ईश्वर !
लीला प्रसार यह बंद करो ! अब हमे बुला
लो परमेश्वर !
::::: अम्बेश तिवारी
रचना काल : दिनांक : 12 जून 2015 दिन
शुक्रवार
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