Friday, June 12, 2015

अंतर्द्वंद.................!

चाँद-चांदनी, अगणित तारे, तरु-पल्लव, कलियाँ क्यों हैं !
धरती, अम्बर, बादल, पर्वत, खेत और नदियाँ क्यों हैं !
क्यों होते दिन-रैन, समय क्यों सदा निरंतर चलता है !
क्यों मौसम आते जाते, सूरज क्यों रोज़ निकलता है !
कहाँ छुपा बैठा है वो जिसने यह सारा खेल रचा !
हम रोते निशिदिन और वो भीतर ही भीतर हँसता है !
आज पूछता हूँ उससे काहे को यह जंजाल रचा !
हे परमेश्वर ! किसकी खातिर यह सब मायाजाल रचा ?

यह पाप-पुण्य, यह झूठ-सत्य, यह धर्म-अधर्म रचा क्यों है !
क्यों अंतस में अनुराग दिया, जीवन वैराग्य रचा क्यों है !
क्यों जन्म हुआ, क्यों मरण हुआ, किसने भेजा, कुछ ज्ञान नहीं !
क्यों लक्ष्य-विहीन बढ़े पथ पर जिसकी सीमा का भान नहीं !
तुम हर्ष-शोक से दूर तो किसके लिए यज्ञ और आराधन,
यह भजन, आरती, और अजान, होता है फिर किसका पूजन !
जब आदि नहीं, कोई अंत नहीं फिर किसको खोजा जाता है !
चिर शून्य विलीन भटक मरते, है मोक्ष कहाँ कुछ ज्ञान नहीं !

जैसे जैसे कुछ ज्ञान बढ़ा, वैसे वैसे कुछ शोक बढ़ा !
जब प्रेम बढ़ा, वैराग्य बढ़ा जब आयु बढ़ी तब रोग बढ़ा !
हमसे पहले कितने आये कितने आगे भी आयेंगे !
यह भार लिए कांधों पर बस एक दिन जीवन से जायेंगे !
इस कष्टों के भवसागर का मिलता न पारावार कोई !
हम जाएँ कहाँ, है अंत कहाँ, है नहीं कहीं आधार कोई !
हम हार चुके इस जीवन से, अब हमे उबारो हे ईश्वर !
लीला प्रसार यह बंद करो ! अब हमे बुला लो परमेश्वर !


::::: अम्बेश तिवारी


रचना काल : दिनांक : 12 जून 2015 दिन शुक्रवार 

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