मित्रों यह एक व्यंग्य रचना है जिसमें मैंने बताने की कोशिश की है आजकल के दौर में नए नए कवि बने लोग खुद को मशहूर करवाने के लिए क्या-क्या हथकण्डे अपनाते हैं ! पढ़िए और मज़ा लीजिये !
मैं हूँ एक छोटा सा कवि मुझको फेमस करवा दो तुम,
मेरी कविता और फ़ोटो, अखबारों में छपवा दो तुम !
नहीं मांगता रुपया पैसा, बस इतनी सी विनती है,
मेरी कविताओं पर लोगों से वाह-वाह सुनवा दो तुम ।
मैं हूँ एक छोटा सा कवि.......
मेरी कविता और फ़ोटो, अखबारों में छपवा दो तुम !
नहीं मांगता रुपया पैसा, बस इतनी सी विनती है,
मेरी कविताओं पर लोगों से वाह-वाह सुनवा दो तुम ।
मैं हूँ एक छोटा सा कवि.......
सुबह सवेरे एक सिगरेट की डिब्बी रोज़ मंगाता हूँ,
शाम ढले तक मित्रों और मदिरा संग धुआं उडाता हूँ ।
ग़ालिब, मीर, फैज़ की ग़ज़लें रात रात भर पढ़ता हूँ,
उनसे लफ्ज़ चुराकर फिर मैं अपनी ग़ज़ल बनाता हूँ ।
उन ग़ज़लों को किसी पत्रिका में स्थान दिला दो तुम,
कवि सम्मेलन में चाहे बिन पैसे के पढ़वा दो तुम ।
मैं हूँ एक छोटा सा कवि..............
शाम ढले तक मित्रों और मदिरा संग धुआं उडाता हूँ ।
ग़ालिब, मीर, फैज़ की ग़ज़लें रात रात भर पढ़ता हूँ,
उनसे लफ्ज़ चुराकर फिर मैं अपनी ग़ज़ल बनाता हूँ ।
उन ग़ज़लों को किसी पत्रिका में स्थान दिला दो तुम,
कवि सम्मेलन में चाहे बिन पैसे के पढ़वा दो तुम ।
मैं हूँ एक छोटा सा कवि..............
सुंदरियों का फ़ोटो रखकर प्रेम प्रेरणा पाता हूँ,
चैटिंग, डेटिंग, ट्विटर, फेसबुक सब पर समय बिताता हूँ।
टीवी और रेडियो पर मैं गीत पुराने सुनता -हूँ,
उलट पलट कर फ़िल्मी मुखड़े अपना गीत बनाता हूँ ।
इन गीतों को शादी में ढोलक पर ही बजवा दो तुम,
और बरात में चाहे इन पर नागिन डांस करा दो तुम ।
मैं हूँ एक छोटा सा कवि...............
चैटिंग, डेटिंग, ट्विटर, फेसबुक सब पर समय बिताता हूँ।
टीवी और रेडियो पर मैं गीत पुराने सुनता -हूँ,
उलट पलट कर फ़िल्मी मुखड़े अपना गीत बनाता हूँ ।
इन गीतों को शादी में ढोलक पर ही बजवा दो तुम,
और बरात में चाहे इन पर नागिन डांस करा दो तुम ।
मैं हूँ एक छोटा सा कवि...............
के.पी. सक्सेना के व्यंग्य को अपना व्यंग्य बताता हूँ,
और काका के छंद चुरा कर छंदकार बन जाता हूँ,
नीरज के अंदाज़ में गाता, बच्चन जी की मधुशाला,
और कुमार विश्वास के जैसे किस्से खूब सुनाता हूँ।
तुम्ही कहो अब करूँ और क्या ? कुछ तो काम दिला दो तुम,
और कुछ नहीं तो छोटा सा एक सम्मान करा दो तुम।
मैं हूँ एक छोटा सा कवि मुझको फेमस करवा दो तुम,
मेरी कविता और फ़ोटो, अखबारों में छपवा दो तुम !
नहीं मांगता रुपया पैसा, बस इतनी सी विनती है,
मेरी कविताओं पर लोगों से वाह-वाह सुनवा दो तुम ।
और काका के छंद चुरा कर छंदकार बन जाता हूँ,
नीरज के अंदाज़ में गाता, बच्चन जी की मधुशाला,
और कुमार विश्वास के जैसे किस्से खूब सुनाता हूँ।
तुम्ही कहो अब करूँ और क्या ? कुछ तो काम दिला दो तुम,
और कुछ नहीं तो छोटा सा एक सम्मान करा दो तुम।
मैं हूँ एक छोटा सा कवि मुझको फेमस करवा दो तुम,
मेरी कविता और फ़ोटो, अखबारों में छपवा दो तुम !
नहीं मांगता रुपया पैसा, बस इतनी सी विनती है,
मेरी कविताओं पर लोगों से वाह-वाह सुनवा दो तुम ।
::::::अम्बेश तिवारी
०१.०६.२०१६
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