कब तक बातें होंगी और मुलाक़ातें होंगी,
सैनिकों के शव हम कब तक उठाएंगे !
सुधरा नहीं जो कभी आज कैसे सुधरेगा,
अहिंसा का पाठ उसे कब तक पढ़ाएंगे !
हम भेजें चिट्ठियां वो भेजते आतंकियों को,
ऐसा यह व्यापार हम कब तक चलाएंगे !
पीठ पे लिए हैं घाव एक नहीं बार-बार,
छप्पन इंची सीना उन्हें कब हम दिखाएंगे !
::::अम्बेश तिवारी
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