खुली आँखों को कोई ख्वाब दिखाया करिये,
कभी आँधी में चरागों को जलाया करिये ।
यूँ सरेआम मोहब्बत की न बातें करिये,
यह दिल के राज़ इशारों में बताया करिये ।
फ़ुर्क़त-ए-इश्क़ में रोना सभी को आता है,
किसी की बेबसी पे अश्क बहाया करिये ।
सिर्फ मस्जिद में इबादत नहीं हुआ करती,
कभी गरीब की बस्ती में भी जाया करिये ।
खिलखिलाने से हुस्न पर निखार आता है,
देख कर हाल मेरा खुद को हँसाया करिये ।
वो न मन्दिर में रहेगा न किसी मस्जिद में,
ख़ुदा को अपनी ज़ेहनियत में बसाया करिये ।
बहुत उम्दा न सही, हम भी ग़ज़ल कहते हैं,
कभी महफ़िल में हमें भी तो बुलाया करिये ।
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अम्बेश तिवारी
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